Monday, December 23, 2024
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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने पहली बार देश में की थी महिला आरक्षण की शुरुआत – प्रियंका सिंह

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका सिंह का महिला आरक्षण अधिनियम को लेकर एक प्रेस वार्ता आयोजित की जिसमे पत्रकारों को सम्बोधित करते हुआ कहा कि सन 1989 में प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की शुरुआत की जब कांग्रेस महिलाओं के लिए आरक्षण हेतु बिल लाई तो बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेई, यशवंत सिंह और राम जेठमलानी ने उसके विरोध में वोट किया।

 

दिसंबर 1992 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया। दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए। कई राज्यों में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोटे के भीतर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गईं। आज श्री राजीव गांधी की दूरदृष्टि से भारत में 15 लाख महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है। इनमें लगभग 40 प्रतिशत निर्वाचित महिला प्रतिनिधि शामिल हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पेश किया जो कि राज्यसभा से पारित हुआ था‌  विधेयक में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान था। एससी और एसटी के लिए उप-कोटा था। राज्यसभा से 9 मार्च 2010 को यह विधेयक पास हो गया था। लेकिन सर्वसम्मति न होने के कारण यह लोकसभा में पास नहीं हो सका।

 

2016: पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मांग की कि मोदी सरकार 8 मार्च 2016 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित करे। सोनिया गांधी जी ने “लंबे समय से प्रतीक्षित” विधेयक को पास करने की मांग की। पीएम मोदी के “मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस” नारे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मैक्सिमम गवर्नेंस का मतलब महिलाओं को उनका हक़ देना है।” फिर, उन्होंने 2017 में पीएम मोदी को पत्र लिखा। उन्होंने नरेंद्र मोदी से गुज़ारिश की थी कि अभी लोकसभा में भाजपा सरकार बहुमत में हैं और इस बहुमत का फ़ायदा उठाते हुए वे लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास करा सकते हैं। पत्र में उन्होंने यह भी लिखा था कि कांग्रेस पार्टी हमेशा इस कानून का समर्थन करती रही है और आगे भी करती रहेगी। यह महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने मांग की कि मोदी सरकार लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित करे l
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जुलाई 2018 में पीएम मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने कहा था – मैं संसद के आगामी मानसून सत्र में महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए समर्थन हेतु लिख रहा हूं। जैसा कि आप जानते हैं, 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा द्वारा पारित महिला आरक्षण विधेयक पिछले आठ वर्षों से भी अधिक समय से लोकसभा में पड़ा हुआ है। जब यह बिल भाजपा के समर्थन से राज्यसभा में पारित हुआ, तब तत्कालीन विपक्ष के नेता अरुण जेटली जी ने इसे “ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण” बताया था। तब से कांग्रेस पार्टी इस विधेयक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अटल रही है। जबकि भाजपा का विचार बदल गया है। भले ही यह 2014 के घोषणापत्र में उसके प्रमुख वादों में से एक था।

 

कांग्रेस ने बिना बहुमत के स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया था। हमने बहुमत के बिना ही राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया था। बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत होने के बावजूद मोदी सरकार साढ़े नौ साल तक महिला आरक्षण बिल को पास क्यों नहीं करवा पाई? सरकार अभी भी देर करने के लिए जनगणना और परिसीमन की शर्तें क्यों थोप रही है?

 

जाति जनगणना का मुद्दा उठाते हुए प्रियंका सिंह ने कहा कि यह कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी जिसने पहली बार 2011-12 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) की थी। मोदी सरकार ने इनके आंकड़ों को जारी करने से भी इंकार कर दिया है। इसके अलावा, मोदी सरकार ने (बिहार) जैसे राज्यों द्वारा किए जाने वाले जाति सर्वेक्षणों पर भी रोक लगाने का प्रयास किया। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान, श्री राहुल गांधी ने विभिन्न राज्यों में ओबीसी समुदाय के लोगों से मुलाक़ात की। मुलाकात के दौरान उन लोगों ने जाति जनगणना की मांग की थी। राहुल गांधी ने उनकी मांगों का समर्थन किया था। 85वें पूर्ण अधिवेशन में पास रायपुर प्रस्ताव में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दशकीय जनगणना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने के लिए प्रतिबद्धता जताई। जाति जनगणना में विमुक्त जनजातियों और घूमंतू जनजातियों की भी गणना शामिल था।

 

कांग्रेस पार्टी की मांग है की 2011 की जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक कर, देश में OBC कितने हैं बताइए।
आरक्षण से 50% कैप हटाइए, दलितों, आदिवासियों को आबादी के अनुसार आरक्षण दिया जाना चाहिए। 16 अप्रैल, 2023 को कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जातिय जनगणना कराने की मांग की। लेकिन पीएम मोदी ने कोई जवाब नहीं दिया। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जाति जनगणना कराने का वादा किया है। इस बीच, बिहार ने सर्वोच्च न्यायालय को अपनी जाति जनगणना पूरी होने की जानकारी दी है।
I.N.D.I.A गठबंधन के 26 दलों ने अपने ‘सामुहिक संकल्प’ में सबसे पहले जाति आधारित जनगणना के माध्यम से सभी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए निष्पक्ष सुनवाई की मांग की।

 

महिलाओं के ख़िलाफ़ जघन्य अपराधों पर भाजपा नेता और विशेष रूप से महिला सांसद चुप रहे हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध करने वालों को भाजपा ने वास्तव में राजनीतिक समर्थन दिया है। सत्ता पक्ष की किसी भी महिला सांसद ने हाथरस, कठुआ, उत्तराखंड या मणिपुर में महिलाओं पर हुए अत्याचारों पर एक शब्द भी नहीं बोला। 2018 में कठुआ में 8 साल की बच्ची को नशीला पदार्थ दिया गया, एक हफ्ते तक सामूहिक बलात्कार किया गया और हत्या कर दी गई। उसके बारे में किसी ने कुछ नहीं बोला। 2019 में तत्कालीन उन्नाव विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के ख़िलाफ़ बलात्कार और हत्या के मामले और उनकी गिरफ़्तारी पर भाजपा सांसद चुप रहे। पीड़िता के पिता, चाचा और चाची की नृशंस हत्या के बाद बीजेपी के साथियों ने सेंगर के घर का दौरा किया और परिवार का गुणगान कियाl 2020 में जब चिन्मयानंद पर शाहजहाँपुर में यौन उत्पीड़न का आरोप लगा तो बीजेपी सांसद चुप रहे।

 

2020 में, हाथरस में एक 19 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया गया और उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई, जिसके बाद प्रशासन और पुलिस ने उसके परिवार की जानकारी के बिना रात 2.30 बजे उसका अंतिम संस्कार कर दिया। सत्तारूढ़ दल की किसी भी महिला सांसद ने न तो इस घटना पर कुछ बोला, न ही गुस्से का इज़हार किया और न ही अपने पुरुष सहयोगियों को पीड़िता का चरित्र हनन करने से रोका। हमें विश्वास है कि भारत की भावी महिला सांसद आज की भाजपा सांसदों की तरह चुप नहीं रहेंगी। वे बेख़ौफ़ होकर महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते हुए जघन्य अपराधों पर बोलेंगी, उनकी भर्त्सना कर सकेंगी और अपराधियों को सज़ा दिलाने के लिए निडर हो कर माँग करेंगी। वे अपनी पार्टियों और सरकारों पर यौन अत्याचार करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग और निंदा करने को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में करेंगी, जैसा कि मणिपुर में हुआ था। क्योंकि सत्तारूढ़ दल की महिला सांसदों ने अपनी चुप्पी और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में संलिप्तता से भारत की महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है। महिला आरक्षण अधिनियम देश की आधी आबादी मातृशक्ति के साथ छलावा और धोखे के अलावा और कुछ नहीं। महिला आरक्षण लागू करने से पहले जिस तरह से केंद्र की भाजपा सरकार ने जनगणना और परिसीमन की शर्तें जोड़ दी हैं उस वजह से निकट भविष्य में तो महिलाओं को आरक्षण मिलता दिखाई नहीं दे रहा

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