उत्तराखंड कांग्रेस के कई कार्यकर्ता और पदाधिकारीयो ने पिछले कुछ महीनो में कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है, इसमें कांग्रेस के कुछ दिग्गज और पुराने कार्यकर्ता भी शामिल रहे है। अभी हाल फिलहाल में ही कांग्रेस का पूर्व में साथ छोड़ आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने वाले कार्यकर्ता भी बीजेपी के आगे नतमस्तक होकर बीजेपी के खेमे में शामिल हो गए।
वही 25 फ़रवरी को कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ता, पूर्व में अनुसूचित जाती एवं जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के ईमानदार छवि वाले दिग्गज कार्यकर्ताओ में शुमार अशोक वर्मा और उनके पुत्र शिवा वर्मा ने कांग्रेस के समस्त पदों और कार्यकर्ता पद से इस्तीफ़ा दे दिया। प्रदेश कांग्रेस में अशोक वर्मा एक ऐसा नाम था जिसकी ख्याति सिर्फ देहरादून शहर में ही नहीं बल्कि पुरे जिले और गढ़वाल क्षेत्र में भी थी। 2012 में हुए विधानसभा चुनावो में कांग्रेस की जीत में अशोकr वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 2012 के विधानसभा चुनावो में राजपुर रोड विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार राजकुमार को विधायक पद पर पहुंचाने का श्रेय अशोक वर्मा को दिया जाता है। हालांकि 2017 और 2022 के चुनावो में मोदी लहर के चलते अशोक वर्मा का जादू नहीं चल पाने के कारण राजपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार खजानदास ने ही विजयश्री का स्वाद चखा।
सूत्रों की माने तो 2019 में अशोक वर्मा ने नगर निगम के चुनावो के दौरान मेयर पद के लिए दावेदारी की थी, पर पार्टी हाईकमान ने उनकी बजाए मेयर पद के लिए दिनेश अग्रवाल को चुना। 2022 के विधानसभा चुनावो में भी अशोक वर्मा राजपुर रोड विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। पुराने और दिग्गज कार्यकर्ताओ के साथ हो रही अनदेखीयो के कारण ही शायद कांग्रेस के कार्यकर्ताओ का विश्वास कांग्रेस के ऊपर से डगमगा रहा है, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस को छोड़ बीजेपी का दामन थामने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखाई देता है।
कल कांग्रेस को दिए अपने इस्तीफे के बाद अशोक वर्मा ने अपने पुत्र शिवा वर्मा के साथ आज बीजेपी के प्रदेश कार्यालय में विधिवत हुए कार्यक्रम में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की जिसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात की। वही खबरें यह भी है कि पूर्व मेयर सुनील उनियाल गामा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के चलते बीजेपी के पास नगर निगम के मेयर पद का चुनाव लड़वाने के लिए कोई ईमानदार छवि वाला सशक्त उम्मीदवार नहीं था इसलिए अशोक वर्मा को कांग्रेस छोड़ने के ऐवज में उन्हें मेयर पद का चुनाव लड़वाने पर सहमति मिली है, अब देखना यह होगा की क्या अशोक वर्मा को नगर निगम के चुनाव में बीजेपी से मेयर के उम्मीदवार बनाया जाता है या नहीं।