प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकाल शुरू होते ही उत्तराखण्ड के जंगल आग से धधकने लगते हैं परन्तु सरकार इस आपदा से निपटने के समय रहते इंतजामात करने में पूरी तरह विफल रहती है। इस वनाग्नि में न केवल करोड़ों रूपये की वन सम्पदा जल कर नष्ट हो जाती है अपितु वन्य जीवों को भी भारी नुकसान पहुंचता है। वर्तमान समय में राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के 95 प्रतिशत वनों में आग लगने से करोड़ों रूपये की वन सम्पदा नष्ट होने के साथ ही जीव-जंतुओं की जन हानि हो रही है परन्तु इसके बावजूद राज्य सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा है।
प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष संगठन एवं प्रशासन मथुरा दत्त जोशी के माध्यम से जारी बयान में उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग पर गम्भीर चिंता प्रकट करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि हर साल मार्च के अंतिम सप्ताह से उत्तराखंड के वनों में आग लगनी शुरू हो जाती है परन्तु जब तक यह दावानल का रूप नहीं ले लेती है तब तक सरकार आंख मूंद कर सोई रहती है। उन्होंने कहा कि आज लगभग दो माह से उत्तराखंड की वन सम्पदा वनों मे लगी आग से नष्ट होती जा रही है परन्तु राज्य सरकार तथा वन विभाग के स्तर से इसे बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आग से धधकती प्रदेश की अमूल्य वन सम्पदा के साथ ही हमारे वन्य पशु, वृक्ष-वनस्पतियां, जल स्रोत और यहां तक कि ग्लेशियर भी इस भीषण दावानल से संकट में है। आज विश्व के पर्यावरणीय वातावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है जिसका असर हिमालय के हिमखण्डों पर भी पड़ रहा है। उत्तराखण्ड राज्य 67 प्रतिशत वनों से आच्छादित है।
करन माहरा ने कहा कि विगत दो माह से लगी वनों की आग से कई जगह हादसों से दोचार होना पडा है। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर दूनागिरी मन्दिर के निकट जंगल में लगी आग के कारण तीर्थ यात्रियों को बमुश्किल अपनी जान पचानी पडी वहीं एडीधूरा मन्दिर में आग से स्थानीय धर्मशाला पूरी तरह जल कर नष्ट हो गई। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में लगी भीषण आग से भगवान के मन्दिर भी सुरक्षित नहीं हैं तथा ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य सरकार की नाकामी से भगवान भी नाराज हैं। पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में चारों ओर आग और धुंवा नजर आ रहा है परन्तु अभी तक सरकार के स्तर से कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं वन विभाग के अधिकारी केवल देहरादून मे के कमरों में बैठ कर नीतियां बना रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री करन माहरा ने यह भी कहा कि पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में प्रत्येक वर्ष लगने वाली आग से बचने के लिए ठोस रणनीति बनाई जानी चाहिए तथा पूर्व की भांति वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व की भांति राज्य की जनता को जल-जंगल और जमीन पर उसके अधिकार दिये जाने चाहिए तथा वन पंचायतों को सक्रिय कर आंधी तूफान से गिरे हुए पेड़ों को उठाने के अधिकार दिये जाने चाहिए ताकि प्रत्येक वर्ष होने वाले इस नुकसान से बचा जा सकता है। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि राज्य के वनों की आग को बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव करने के शीघ्र इंतजाम किये जाने चाहिए।